وا فريادا ز عشق وا فريادا |
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کارم بيکي طرفه نگار افتادا |
گر داد من شکسته دادا دادا |
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ور نه من و عشق هر چه بادا بادا |
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گفتم صنما لاله رخا دلدارا |
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در خواب نماي چهره باري يارا |
گفتا که روي به خواب بي ما وانگه |
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خواهي که دگر به خواب بيني ما را |
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در کعبه اگر دل سوي غيرست ترا |
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طاعت همه فسق و کعبه ديرست ترا |
ور دل به خدا و ساکن ميکدهاي |
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مي نوش که عاقبت بخيرست ترا |
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وصل تو کجا و من مهجور کجا |
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دردانه کجا حوصله مور کجا |
هر چند ز سوختن ندارم باکي |
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پروانه کجا و آتش طور کجا |
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تا درد رسيد چشم خونخوار ترا |
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خواهم که کشد جان من آزار ترا |
يا رب که ز چشم زخم دوران هرگز |
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دردي نرسد نرگس بيمار ترا |
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گفتي که منم ماه نشابور سرا |
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اي ماه نشابور نشابور ترا |
آن تو ترا و آن ما نيز ترا |
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با ما بنگويي که خصومت ز چرا |
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يا رب ز کرم دري برويم بگشا |
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راهي که درو نجات باشد بنما |
مستغنيم از هر دو جهان کن به کرم |
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جز ياد تو هر چه هست بر از دل ما |
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يا رب مکن از لطف پريشان ما را |
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هر چند که هست جرم و عصيان ما را |
ذات تو غني بوده و ما محتاجيم |
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محتاج بغير خود مگردان ما را |
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گر بر در دير مينشاني ما را |
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گر در ره کعبه ميدواني ما را |
اينها همگي لازمهي هستي ماست |
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خوش آنکه ز خويش وارهاني ما را |
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تا چند کشم غصهي هر ناکس را |
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وز خست خود خاک شوم هر کس را |
کارم به دعا چو برنميآيد راست |
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دادم سه طلاق اين فلک اطلس را |
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يا رب به محمد و علي و زهرا |
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يا رب به حسين و حسن و آلعبا |
کز لطف برآر حاجتم در دو سرا |
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بيمنت خلق يا علي الاعلا |
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اي شير سرافراز زبردست خدا |
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اي تير شهاب ثاقب شست خدا |
آزادم کن ز دست اين بيدستان |
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دست من و دامن تو اي دست خدا |
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منصور حلاج آن نهنگ دريا |
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کز پنبهي تن دانهي جان کرد جدا |
روزيکه انا الحق به زبان ميآورد |
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منصور کجا بود؟ خدا بود خدا |
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در ديده بجاي خواب آبست مرا |
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زيرا که بديدنت شتابست مرا |
گويند بخواب تا به خوابش بيني |
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اي بيخبران چه جاي خوابست مرا |
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آن رشته که قوت روانست مرا |
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آرامش جان ناتوانست مرا |
بر لب چو کشي جان کشدم از پي آن |
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پيوند چو با رشتهي جانست مرا |
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پرسيدم ازو واسطهي هجران را |
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گفتا سببي هست بگويم آن را |
من چشم توام اگر نبيني چه عجب |
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من جان توام کسي نبيند جان را |
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اي دوست دوا فرست بيماران را |
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روزي ده جن و انس و هم ياران را |
ما تشنه لبان وادي حرمانيم |
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بر کشت اميد ما بده باران را |